Sunday, August 07, 2011

समंदर की गहराई


बचपन से ही जहाज बनाने का सपना था

बारिशों में लम्बें चौड़े रंगीन बेरंगें बहुत जहाज बनाये थे,

सरकारी लाईब्ररी में जहाजों के फोटो देख देख कर वो जूनून सा हो चला था

स्कूल के साईंस प्रोजेक्ट में इनाम भी मिला और खूब प्रोत्साहन भी

बचपन से ही जहाज बनाने का सपना था


एटलस में सारे देश नाप लिए थे,

पूरी दुनिया में घुमने के लिए बस्ता बाँध कर चल देंगे

सात समंदर, पांच महासागर , दुनिए के आखिरी कौने तक पहुँच के डूबते सूरज को भी तो देखना था

जिस दिन पता चला धरती गोल है , रात में खाना नहीं खाया था

बचपन से ही जहाज बनाने का सपना था


कब बाबा की फैक्ट्री में काम करना शुरू कर दिया

कब जहाज की जगह गत्ते के डब्बे बनाने लगा

बारिश आती गयी और डब्बे ही बनते रहे

दुनिया में कुछ नए देश भी पैदा हो गया थे, पर वो पुराना एटलस अब नहीं मिलता, कुछ नये रस्ते बनाने थे उसमे


दो बार घर से भी भगा था,

पर वो समंदर अचानक से बहुत बड़ा लगने लगा

समय ने खिंच तान कर सब को लम्बा तो कर दिया

पर जहाज छोटे ही रह गए, घर वालों ने रो रो कर वापस गत्ते का काम थमा दिया

आजकल प्लास्टिक के डब्बे बनता हूँ , यह पानी में ख़राब भी नहीं होते,


वो पुराने सारे कागज के जहाज तो पानी में एक एक कर डूबते चले गए

समंदर की गहराई का अंदाजा सा लग गया है अब

किनारे की बस्ती में ही जिंदगी बसर होगी शायद

1 Comments:

Blogger ani said...

jo na jaane haq ki taakat rabb na deve usko himmat.. hum man ke dariya me doobe.. kaise naiya.. kya manjhdhaar!

3:22 PM  

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