सुना है आज मैदान में फिर से किसी ने हुंकार भरी है
सुना है आज फिर कोई सरकार से टकराने को तैयार खड़ा है
आज फिर से एक नए आन्दोलन की शुरुआत है
जन सैलाब उमड़ पड़ा है
आज सब उस अर्जुन की विजय की प्राथर्ना कर रहे हैं
सब अपने अपने कर्मभूमि से छुट्टी लेकर
उस नयी 'लीडर' का उत्साह वर्धन करने मैदान में आ रहा है
पर हमारा क्या?
हमारी माँ जो अस्पताल के जनरल वार्ड में भर्ती है
पर डॉक्टर आज रैली में है
बाबा जो सिग्नल में फँसी हुई अमबुलंस में जुज्झ रहे हैं
मोहल्लेह में चोरी हो गयी पर
पुलिस ऑफिसर नदारद हैं
ड्यूटी लगी है मैदान में
वो बाल श्रमिक जो टोपी बना रहा है, झंडे सी रहा है
सुना है 'डिमांड' ज्यादा है झंडे और टोपी की
कल से और बच्चे काम करने आयेंगे गोदाम में
वो मजदुर जिसे ५ बजे तक माल पहुचना है रेलवे स्टेशन में
फंसा पड़ा है इस रैली के बीच में
गाडी छुट गयी तो शायद आज भी भूखा रहना पड़ेगा
माना नेता भ्रष्ट हैं
राक्षस हैं वदध योग्य हैं
पर उनकें संहार में क्यूँ हम पिसें
गेहूँ की पिसाई में घुन तो पिस्ता ही है
वो सरकारी और प्राइवेट नौकरी वाले तो शाम को आते हैं
और जन सम्रथन में नारे दे कर
रात को चैन की नीद सो भी जाते हैं
कल १लाख लोग आये थे, उनके फेंके हुए तिरंगे
पानी की बोत्तले, झूटे खाने के पत्रे हमने साफ़ किये थे
पता नहीं कौन किस को पीस रहा है इस लड़ाई में
यह घुन हमेशा हम ही क्यूँ बनें
हमें भी न्याय चाहिए हमें भी साफ़ सुथरी सरकार चाहिए
पर उन सबसे बढ़ के हमें रोज घर में खाना चाहिए